Directions (1-10): नीचे दिए गए प्रत्येक परिच्छेद में कुछ रिक्त स्थान छोड़ दिए गए हैं तथा उन्हें प्रश्न संख्या से दर्शाया गया है। ये संख्याएँ परिच्छेद के नीचे मुद्रित हैं, और प्रत्येक के सामने (a), (b), (c), (d) और (e) विकल्प दिए गए हैं। इन पाँचों में से कोई एक इस रिक्त स्थान को पूरे परिच्छेद के संदर्भ में उपयुक्त ढंग से पूरा कर देता है। आपको वह विकल्प ज्ञात करना है और उसका क्रमांक ही उत्तर के रूप में दर्शाना है। आपको दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन करना है।
Q1. जयशंकर प्रसाद ने हिंदी काव्य में छायावाद की (1) की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध (2) प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई। वे छायावाद के प्रतिष्ठापक ही नहीं अपितु छायावादी पद्धति पर सरस संगीतमय गीतों के लिखनेवाले (3) कवि भी बने। काव्यक्षेत्र में प्रसाद की (4) का मूलाधार ‘कामायनी’ है। खड़ी बोली का यह (5) महाकाव्य मनु और श्रद्धा को आधार बनाकर रचित मानवता को विजयिनी बनाने का संदेश देता है। यह रूपक कथाकाव्य भी है जिसमें मन, श्रद्धा और इड़ा (बुद्धि) के योग से अखंड आनंद की उपलब्धि का रूपक प्रत्यभिज्ञा दर्शन के आधार पर (6) किया गया है। उनकी यह कृति छायावाद ओर खड़ी बोली की काव्यगरिमा का ज्वलंत (7) है। सुमित्रानन्दन पंत इसे ‘हिंदी में ताजमहल के समान’ मानते हैं। शिल्पविधि, भाषासौष्ठव एवं भावाभिव्यक्ति की दृष्टि से इसकी तुलना खड़ी बोली के किसी भी काव्य से नहीं की जा सकती है। जयशंकर प्रसाद ने अपने दौर के पारसी रंगमंच की परंपरा को अस्वीकारते हुए भारत के गौरवमय अतीत के अनमोल (8) को सामने लाते हुए अविस्मरनीय नाटकों की रचना की। उनके नाटक स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि में स्वर्णिम अतीत को सामने रखकर मानों एक सोये हुए देश को जागने की प्रेरणा दी जा रही थी। उनके नाटकों में (9) का स्वर अत्यंत दर्शनीय है और इन नाटकों में कई अत्यंत सुंदर और प्रसिद्ध गीत मिलते हैं। ‘हिमाद्रि तुंग शृंग से’, ‘अरुण यह मधुमय देश हमारा’ जैसे उनके नाटकों के गीत (10) रहे हैं।
(a) अवनति
(b) स्थापना
(c) उन्नति
(d) प्रशंसा
(e) इनमें से कोई नहीं
Q2. जयशंकर प्रसाद ने हिंदी काव्य में छायावाद की (1) की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध (2) प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई। वे छायावाद के प्रतिष्ठापक ही नहीं अपितु छायावादी पद्धति पर सरस संगीतमय गीतों के लिखनेवाले (3) कवि भी बने। काव्यक्षेत्र में प्रसाद की (4) का मूलाधार ‘कामायनी’ है। खड़ी बोली का यह (5) महाकाव्य मनु और श्रद्धा को आधार बनाकर रचित मानवता को विजयिनी बनाने का संदेश देता है। यह रूपक कथाकाव्य भी है जिसमें मन, श्रद्धा और इड़ा (बुद्धि) के योग से अखंड आनंद की उपलब्धि का रूपक प्रत्यभिज्ञा दर्शन के आधार पर (6) किया गया है। उनकी यह कृति छायावाद ओर खड़ी बोली की काव्यगरिमा का ज्वलंत (7) है। सुमित्रानन्दन पंत इसे ‘हिंदी में ताजमहल के समान’ मानते हैं। शिल्पविधि, भाषासौष्ठव एवं भावाभिव्यक्ति की दृष्टि से इसकी तुलना खड़ी बोली के किसी भी काव्य से नहीं की जा सकती है। जयशंकर प्रसाद ने अपने दौर के पारसी रंगमंच की परंपरा को अस्वीकारते हुए भारत के गौरवमय अतीत के अनमोल (8) को सामने लाते हुए अविस्मरनीय नाटकों की रचना की। उनके नाटक स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि में स्वर्णिम अतीत को सामने रखकर मानों एक सोये हुए देश को जागने की प्रेरणा दी जा रही थी। उनके नाटकों में (9) का स्वर अत्यंत दर्शनीय है और इन नाटकों में कई अत्यंत सुंदर और प्रसिद्ध गीत मिलते हैं। ‘हिमाद्रि तुंग शृंग से’, ‘अरुण यह मधुमय देश हमारा’ जैसे उनके नाटकों के गीत (10) रहे हैं।
(a) वायु
(b) काया
(c) माया
(d) इनमें से कोई नहीं
(e) धारा
Q3. जयशंकर प्रसाद ने हिंदी काव्य में छायावाद की (1) की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध (2) प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई। वे छायावाद के प्रतिष्ठापक ही नहीं अपितु छायावादी पद्धति पर सरस संगीतमय गीतों के लिखनेवाले (3) कवि भी बने। काव्यक्षेत्र में प्रसाद की (4) का मूलाधार ‘कामायनी’ है। खड़ी बोली का यह (5) महाकाव्य मनु और श्रद्धा को आधार बनाकर रचित मानवता को विजयिनी बनाने का संदेश देता है। यह रूपक कथाकाव्य भी है जिसमें मन, श्रद्धा और इड़ा (बुद्धि) के योग से अखंड आनंद की उपलब्धि का रूपक प्रत्यभिज्ञा दर्शन के आधार पर (6) किया गया है। उनकी यह कृति छायावाद ओर खड़ी बोली की काव्यगरिमा का ज्वलंत (7) है। सुमित्रानन्दन पंत इसे ‘हिंदी में ताजमहल के समान’ मानते हैं। शिल्पविधि, भाषासौष्ठव एवं भावाभिव्यक्ति की दृष्टि से इसकी तुलना खड़ी बोली के किसी भी काव्य से नहीं की जा सकती है। जयशंकर प्रसाद ने अपने दौर के पारसी रंगमंच की परंपरा को अस्वीकारते हुए भारत के गौरवमय अतीत के अनमोल (8) को सामने लाते हुए अविस्मरनीय नाटकों की रचना की। उनके नाटक स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि में स्वर्णिम अतीत को सामने रखकर मानों एक सोये हुए देश को जागने की प्रेरणा दी जा रही थी। उनके नाटकों में (9) का स्वर अत्यंत दर्शनीय है और इन नाटकों में कई अत्यंत सुंदर और प्रसिद्ध गीत मिलते हैं। ‘हिमाद्रि तुंग शृंग से’, ‘अरुण यह मधुमय देश हमारा’ जैसे उनके नाटकों के गीत (10) रहे हैं।
(a) सामान्य
(b) इनमें से कोई नहीं
(c) प्रथम
(d) श्रेष्ठ
(e) द्वितीय
Q4. जयशंकर प्रसाद ने हिंदी काव्य में छायावाद की (1) की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध (2) प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई। वे छायावाद के प्रतिष्ठापक ही नहीं अपितु छायावादी पद्धति पर सरस संगीतमय गीतों के लिखनेवाले (3) कवि भी बने। काव्यक्षेत्र में प्रसाद की (4) का मूलाधार ‘कामायनी’ है। खड़ी बोली का यह (5) महाकाव्य मनु और श्रद्धा को आधार बनाकर रचित मानवता को विजयिनी बनाने का संदेश देता है। यह रूपक कथाकाव्य भी है जिसमें मन, श्रद्धा और इड़ा (बुद्धि) के योग से अखंड आनंद की उपलब्धि का रूपक प्रत्यभिज्ञा दर्शन के आधार पर (6) किया गया है। उनकी यह कृति छायावाद ओर खड़ी बोली की काव्यगरिमा का ज्वलंत (7) है। सुमित्रानन्दन पंत इसे ‘हिंदी में ताजमहल के समान’ मानते हैं। शिल्पविधि, भाषासौष्ठव एवं भावाभिव्यक्ति की दृष्टि से इसकी तुलना खड़ी बोली के किसी भी काव्य से नहीं की जा सकती है। जयशंकर प्रसाद ने अपने दौर के पारसी रंगमंच की परंपरा को अस्वीकारते हुए भारत के गौरवमय अतीत के अनमोल (8) को सामने लाते हुए अविस्मरनीय नाटकों की रचना की। उनके नाटक स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि में स्वर्णिम अतीत को सामने रखकर मानों एक सोये हुए देश को जागने की प्रेरणा दी जा रही थी। उनके नाटकों में (9) का स्वर अत्यंत दर्शनीय है और इन नाटकों में कई अत्यंत सुंदर और प्रसिद्ध गीत मिलते हैं। ‘हिमाद्रि तुंग शृंग से’, ‘अरुण यह मधुमय देश हमारा’ जैसे उनके नाटकों के गीत (10) रहे हैं।
(a) यथार्थता
(b) कविता
(c) स्थिति
(d) कीर्ति
(e) इनमें से कोई नहीं
Q5. जयशंकर प्रसाद ने हिंदी काव्य में छायावाद की (1) की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध (2) प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई। वे छायावाद के प्रतिष्ठापक ही नहीं अपितु छायावादी पद्धति पर सरस संगीतमय गीतों के लिखनेवाले (3) कवि भी बने। काव्यक्षेत्र में प्रसाद की (4) का मूलाधार ‘कामायनी’ है। खड़ी बोली का यह (5) महाकाव्य मनु और श्रद्धा को आधार बनाकर रचित मानवता को विजयिनी बनाने का संदेश देता है। यह रूपक कथाकाव्य भी है जिसमें मन, श्रद्धा और इड़ा (बुद्धि) के योग से अखंड आनंद की उपलब्धि का रूपक प्रत्यभिज्ञा दर्शन के आधार पर (6) किया गया है। उनकी यह कृति छायावाद ओर खड़ी बोली की काव्यगरिमा का ज्वलंत (7) है। सुमित्रानन्दन पंत इसे ‘हिंदी में ताजमहल के समान’ मानते हैं। शिल्पविधि, भाषासौष्ठव एवं भावाभिव्यक्ति की दृष्टि से इसकी तुलना खड़ी बोली के किसी भी काव्य से नहीं की जा सकती है। जयशंकर प्रसाद ने अपने दौर के पारसी रंगमंच की परंपरा को अस्वीकारते हुए भारत के गौरवमय अतीत के अनमोल (8) को सामने लाते हुए अविस्मरनीय नाटकों की रचना की। उनके नाटक स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि में स्वर्णिम अतीत को सामने रखकर मानों एक सोये हुए देश को जागने की प्रेरणा दी जा रही थी। उनके नाटकों में (9) का स्वर अत्यंत दर्शनीय है और इन नाटकों में कई अत्यंत सुंदर और प्रसिद्ध गीत मिलते हैं। ‘हिमाद्रि तुंग शृंग से’, ‘अरुण यह मधुमय देश हमारा’ जैसे उनके नाटकों के गीत (10) रहे हैं।
(a) महान
(b) प्रसिद्ध
(c) अद्वितीय
(d) संक्षिप्त
(e) इनमें से कोई नहीं
Q6. जयशंकर प्रसाद ने हिंदी काव्य में छायावाद की (1) की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध (2) प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई। वे छायावाद के प्रतिष्ठापक ही नहीं अपितु छायावादी पद्धति पर सरस संगीतमय गीतों के लिखनेवाले (3) कवि भी बने। काव्यक्षेत्र में प्रसाद की (4) का मूलाधार ‘कामायनी’ है। खड़ी बोली का यह (5) महाकाव्य मनु और श्रद्धा को आधार बनाकर रचित मानवता को विजयिनी बनाने का संदेश देता है। यह रूपक कथाकाव्य भी है जिसमें मन, श्रद्धा और इड़ा (बुद्धि) के योग से अखंड आनंद की उपलब्धि का रूपक प्रत्यभिज्ञा दर्शन के आधार पर (6) किया गया है। उनकी यह कृति छायावाद ओर खड़ी बोली की काव्यगरिमा का ज्वलंत (7) है। सुमित्रानन्दन पंत इसे ‘हिंदी में ताजमहल के समान’ मानते हैं। शिल्पविधि, भाषासौष्ठव एवं भावाभिव्यक्ति की दृष्टि से इसकी तुलना खड़ी बोली के किसी भी काव्य से नहीं की जा सकती है। जयशंकर प्रसाद ने अपने दौर के पारसी रंगमंच की परंपरा को अस्वीकारते हुए भारत के गौरवमय अतीत के अनमोल (8) को सामने लाते हुए अविस्मरनीय नाटकों की रचना की। उनके नाटक स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि में स्वर्णिम अतीत को सामने रखकर मानों एक सोये हुए देश को जागने की प्रेरणा दी जा रही थी। उनके नाटकों में (9) का स्वर अत्यंत दर्शनीय है और इन नाटकों में कई अत्यंत सुंदर और प्रसिद्ध गीत मिलते हैं। ‘हिमाद्रि तुंग शृंग से’, ‘अरुण यह मधुमय देश हमारा’ जैसे उनके नाटकों के गीत (10) रहे हैं।
(a) संयोजित
(b) विकसित
(c) प्रचलित
(d) रेखांकित
(e) इनमें से कोई नहीं
Q7. जयशंकर प्रसाद ने हिंदी काव्य में छायावाद की (1) की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध (2) प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई। वे छायावाद के प्रतिष्ठापक ही नहीं अपितु छायावादी पद्धति पर सरस संगीतमय गीतों के लिखनेवाले (3) कवि भी बने। काव्यक्षेत्र में प्रसाद की (4) का मूलाधार ‘कामायनी’ है। खड़ी बोली का यह (5) महाकाव्य मनु और श्रद्धा को आधार बनाकर रचित मानवता को विजयिनी बनाने का संदेश देता है। यह रूपक कथाकाव्य भी है जिसमें मन, श्रद्धा और इड़ा (बुद्धि) के योग से अखंड आनंद की उपलब्धि का रूपक प्रत्यभिज्ञा दर्शन के आधार पर (6) किया गया है। उनकी यह कृति छायावाद ओर खड़ी बोली की काव्यगरिमा का ज्वलंत (7) है। सुमित्रानन्दन पंत इसे ‘हिंदी में ताजमहल के समान’ मानते हैं। शिल्पविधि, भाषासौष्ठव एवं भावाभिव्यक्ति की दृष्टि से इसकी तुलना खड़ी बोली के किसी भी काव्य से नहीं की जा सकती है। जयशंकर प्रसाद ने अपने दौर के पारसी रंगमंच की परंपरा को अस्वीकारते हुए भारत के गौरवमय अतीत के अनमोल (8) को सामने लाते हुए अविस्मरनीय नाटकों की रचना की। उनके नाटक स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि में स्वर्णिम अतीत को सामने रखकर मानों एक सोये हुए देश को जागने की प्रेरणा दी जा रही थी। उनके नाटकों में (9) का स्वर अत्यंत दर्शनीय है और इन नाटकों में कई अत्यंत सुंदर और प्रसिद्ध गीत मिलते हैं। ‘हिमाद्रि तुंग शृंग से’, ‘अरुण यह मधुमय देश हमारा’ जैसे उनके नाटकों के गीत (10) रहे हैं।
(a) प्रश्न
(b) उदाहरण
(c) विषय
(d) साहित्य
(e) महत्व
Q8. जयशंकर प्रसाद ने हिंदी काव्य में छायावाद की (1) की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध (2) प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई। वे छायावाद के प्रतिष्ठापक ही नहीं अपितु छायावादी पद्धति पर सरस संगीतमय गीतों के लिखनेवाले (3) कवि भी बने। काव्यक्षेत्र में प्रसाद की (4) का मूलाधार ‘कामायनी’ है। खड़ी बोली का यह (5) महाकाव्य मनु और श्रद्धा को आधार बनाकर रचित मानवता को विजयिनी बनाने का संदेश देता है। यह रूपक कथाकाव्य भी है जिसमें मन, श्रद्धा और इड़ा (बुद्धि) के योग से अखंड आनंद की उपलब्धि का रूपक प्रत्यभिज्ञा दर्शन के आधार पर (6) किया गया है। उनकी यह कृति छायावाद ओर खड़ी बोली की काव्यगरिमा का ज्वलंत (7) है। सुमित्रानन्दन पंत इसे ‘हिंदी में ताजमहल के समान’ मानते हैं। शिल्पविधि, भाषासौष्ठव एवं भावाभिव्यक्ति की दृष्टि से इसकी तुलना खड़ी बोली के किसी भी काव्य से नहीं की जा सकती है। जयशंकर प्रसाद ने अपने दौर के पारसी रंगमंच की परंपरा को अस्वीकारते हुए भारत के गौरवमय अतीत के अनमोल (8) को सामने लाते हुए अविस्मरनीय नाटकों की रचना की। उनके नाटक स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि में स्वर्णिम अतीत को सामने रखकर मानों एक सोये हुए देश को जागने की प्रेरणा दी जा रही थी। उनके नाटकों में (9) का स्वर अत्यंत दर्शनीय है और इन नाटकों में कई अत्यंत सुंदर और प्रसिद्ध गीत मिलते हैं। ‘हिमाद्रि तुंग शृंग से’, ‘अरुण यह मधुमय देश हमारा’ जैसे उनके नाटकों के गीत (10) रहे हैं।
(a) काव्य
(b) शीर्षकों
(c) चरित्रों
(d) पन्नों
(e) इनमें से कोई नहीं
Q9. जयशंकर प्रसाद ने हिंदी काव्य में छायावाद की (1) की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध (2) प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई। वे छायावाद के प्रतिष्ठापक ही नहीं अपितु छायावादी पद्धति पर सरस संगीतमय गीतों के लिखनेवाले (3) कवि भी बने। काव्यक्षेत्र में प्रसाद की (4) का मूलाधार ‘कामायनी’ है। खड़ी बोली का यह (5) महाकाव्य मनु और श्रद्धा को आधार बनाकर रचित मानवता को विजयिनी बनाने का संदेश देता है। यह रूपक कथाकाव्य भी है जिसमें मन, श्रद्धा और इड़ा (बुद्धि) के योग से अखंड आनंद की उपलब्धि का रूपक प्रत्यभिज्ञा दर्शन के आधार पर (6) किया गया है। उनकी यह कृति छायावाद ओर खड़ी बोली की काव्यगरिमा का ज्वलंत (7) है। सुमित्रानन्दन पंत इसे ‘हिंदी में ताजमहल के समान’ मानते हैं। शिल्पविधि, भाषासौष्ठव एवं भावाभिव्यक्ति की दृष्टि से इसकी तुलना खड़ी बोली के किसी भी काव्य से नहीं की जा सकती है। जयशंकर प्रसाद ने अपने दौर के पारसी रंगमंच की परंपरा को अस्वीकारते हुए भारत के गौरवमय अतीत के अनमोल (8) को सामने लाते हुए अविस्मरनीय नाटकों की रचना की। उनके नाटक स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि में स्वर्णिम अतीत को सामने रखकर मानों एक सोये हुए देश को जागने की प्रेरणा दी जा रही थी। उनके नाटकों में (9) का स्वर अत्यंत दर्शनीय है और इन नाटकों में कई अत्यंत सुंदर और प्रसिद्ध गीत मिलते हैं। ‘हिमाद्रि तुंग शृंग से’, ‘अरुण यह मधुमय देश हमारा’ जैसे उनके नाटकों के गीत (10) रहे हैं।
(a) संगीत
(b) कोमलता
(c) माधुर्य
(d) इनमें से कोई नहीं
(e) देशप्रेम
Q10. जयशंकर प्रसाद ने हिंदी काव्य में छायावाद की (1) की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध (2) प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई। वे छायावाद के प्रतिष्ठापक ही नहीं अपितु छायावादी पद्धति पर सरस संगीतमय गीतों के लिखनेवाले (3) कवि भी बने। काव्यक्षेत्र में प्रसाद की (4) का मूलाधार ‘कामायनी’ है। खड़ी बोली का यह (5) महाकाव्य मनु और श्रद्धा को आधार बनाकर रचित मानवता को विजयिनी बनाने का संदेश देता है। यह रूपक कथाकाव्य भी है जिसमें मन, श्रद्धा और इड़ा (बुद्धि) के योग से अखंड आनंद की उपलब्धि का रूपक प्रत्यभिज्ञा दर्शन के आधार पर (6) किया गया है। उनकी यह कृति छायावाद ओर खड़ी बोली की काव्यगरिमा का ज्वलंत (7) है। सुमित्रानन्दन पंत इसे ‘हिंदी में ताजमहल के समान’ मानते हैं। शिल्पविधि, भाषासौष्ठव एवं भावाभिव्यक्ति की दृष्टि से इसकी तुलना खड़ी बोली के किसी भी काव्य से नहीं की जा सकती है। जयशंकर प्रसाद ने अपने दौर के पारसी रंगमंच की परंपरा को अस्वीकारते हुए भारत के गौरवमय अतीत के अनमोल (8) को सामने लाते हुए अविस्मरनीय नाटकों की रचना की। उनके नाटक स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त आदि में स्वर्णिम अतीत को सामने रखकर मानों एक सोये हुए देश को जागने की प्रेरणा दी जा रही थी। उनके नाटकों में (9) का स्वर अत्यंत दर्शनीय है और इन नाटकों में कई अत्यंत सुंदर और प्रसिद्ध गीत मिलते हैं। ‘हिमाद्रि तुंग शृंग से’, ‘अरुण यह मधुमय देश हमारा’ जैसे उनके नाटकों के गीत (10) रहे हैं।
(a) स्पष्ट
(b) सुप्रसिद्ध
(c) सरल
(d) संगीतमय
(e) कठिन
Solutions
S1. Ans. (b)
Sol. यहाँ ‘स्थापना’ शब्द का प्रयोग उचित है।
S2. Ans. (e)
Sol. यहाँ ‘धारा’ शब्द का प्रयोग उचित है।
S3. Ans. (d)
Sol. यहाँ ‘श्रेष्ठ’ शब्द का प्रयोग उचित है।
S4. Ans. (d)
Sol. यहाँ ‘कीर्ति’ शब्द का प्रयोग उचित है।
S5. Ans. (c)
Sol. यहाँ ‘अद्वितीय’ शब्द का प्रयोग उचित है।
S6. Ans. (a)
Sol. यहाँ संयोजित शब्द का प्रयोग उचित है।
S7. Ans. (b)
Sol. यहाँ ‘उदाहरण’ शब्द का प्रयोग उचित है।
S8. Ans. (c)
Sol. यहाँ ‘चरित्रों’ का प्रयोग उचित है।
S9. Ans. (e)
Sol. यहाँ ‘देशप्रेम’ का प्रयोग उचित है।
S10. Ans. (b)
Sol.यहाँ ‘सुप्रसिद्ध’ का प्रयोग उचित है।